भागती दौड़ती
यह ज़िन्दगी
भीड़ ही भीड़ जहाँ देखा
हर कोई भाग रहा
मंज़िल कहाँ मालूम नही
है अंतहीन यह दौड़
इच्छाओं की
चाहतों और तृष्णाओं की
रूकती नही कभी
बस
है भागती जाती
भाग रहे सब
अपनी धुन में
परवाह नही
किसी को किसी की
है खो गये कहीं
इस भागमभाग में
अनमोल रिश्ते नाते
छूट गये कहीं
थे जो कभी अपने
रेखा जोशी
यह ज़िन्दगी
भीड़ ही भीड़ जहाँ देखा
हर कोई भाग रहा
मंज़िल कहाँ मालूम नही
है अंतहीन यह दौड़
इच्छाओं की
चाहतों और तृष्णाओं की
रूकती नही कभी
बस
है भागती जाती
भाग रहे सब
अपनी धुन में
परवाह नही
किसी को किसी की
है खो गये कहीं
इस भागमभाग में
अनमोल रिश्ते नाते
छूट गये कहीं
थे जो कभी अपने
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment