टूट कर
बिखर गए सब पत्ते
छोड़ अपना अस्तिव
ऐसी चली हवा
ले उड़ी संग उन्हें
देख रहा
असहाय सा पेड़
है इंतज़ार
नव बहार का
फिर
होगा फुटाव
नव कोपलों का
फिर से
हरी भरी शाखाओं
पर
खिलें गे फूल
महके गा
चमन फिर से
रेखा जोशी
बिखर गए सब पत्ते
छोड़ अपना अस्तिव
ऐसी चली हवा
ले उड़ी संग उन्हें
देख रहा
असहाय सा पेड़
है इंतज़ार
नव बहार का
फिर
होगा फुटाव
नव कोपलों का
फिर से
हरी भरी शाखाओं
पर
खिलें गे फूल
महके गा
चमन फिर से
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment