Sunday, 26 October 2014

महके गा चमन फिर से

टूट कर
बिखर गए सब पत्ते
छोड़ अपना अस्तिव
ऐसी चली हवा
ले उड़ी संग उन्हें
देख रहा
असहाय सा पेड़
है इंतज़ार
नव बहार का
फिर
होगा फुटाव
नव कोपलों का
फिर से
हरी भरी शाखाओं
पर
खिलें गे फूल
महके गा
चमन फिर से

रेखा जोशी 

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