Sunday 12 October 2014

वोह प्यारे ख़्वाब हमारे


इंद्रधनुषी रंगों से
सजाया  था हमने
महकता हुआ गुलशन
ख़्वाबों में अपने
गुलज़ार थी जिसमे
हमारी ज़िंदगी
दुनिया से दूर
मै और तुम
बाते किया करते
थे आँखों से अपनी
कुहकती थी कोयलिया भी
बगिया में हमारी
गाती थी वो भी
प्रेम तराने
टूट गए सब सपने
खुलते ही आँखे
बिखर गए सब रंग
और हम
भरते ही रह गए
ठंडी आहें
काश सच हो पाते
वोह प्यारे
ख़्वाब हमारे

रेखा जोशी

No comments:

Post a Comment