Sunday, 19 October 2014

मंजिलें मिलें गी आगे बहुत मिले गी तुम को नयी राह

माना गम की रात लम्बी है सो जा तू चादर को तान 
उषा किरण सुबह को जब आये  बदल जाये समय की धार  
थक कर कहीं तुम रुक न जाना न समझना जीवन को भार 
मंजिलें मिलें गी आगे बहुत मिले गी तुम को नयी राह 

रेखा जोशी 

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