क्षणिका
भरी धरा
पापियों से
मन ने भरा
आक्रोश
धधक रही भीतर
ज्वाला
सहती रही
अवनी
असहनीय पीड़ा
अंतस की
उगल दिया लावा
उसने
फूट गई
जवालामुखी बन
पापियों से
मन ने भरा
आक्रोश
धधक रही भीतर
ज्वाला
सहती रही
अवनी
असहनीय पीड़ा
अंतस की
उगल दिया लावा
उसने
फूट गई
जवालामुखी बन
रेखा जोशी
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