Monday, 20 April 2015

आओ भगिनी मिटा कर द्वेष बने सखियाँ

बहन हूँ तुम्हारी 
सौतेली हुई तो क्या 
करती हूँ स्नेह तुमसे 
चाहती हूँ तुम्हे बनाना अपना 
और तुम 
रहती हो खफा खफा मुझसे 
नहीं करती मै  ईर्ष्या तुमसे 
और तुम 
डाह की अग्नि में 
क्यों जला रही हो खुद को 
जलन यह तुम्हारी देगी मिटा 
तुम्हारे अंतस के प्रेम को 
आओ भगिनी मिटा कर द्वेष 
बने सखियाँ 
रहें मिलजुल कर 
दे सुख  दुख में साथ 
इक दूजे का 

रेखा जोशी 

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