देखती हूँ हर रोज़
अपनी बगिया के पेड़ पर
नीड़ इक झूलता हुआ
महफूज़ थे जिसमें
वो नन्हे से
चिड़िया के बच्चे
चिड़िया के बच्चे
चोंच खोले आस में
माँ के इंतज़ार में
पाते ही आहट उसकी
चहचहाते उमंग से
उन नन्ही सी चोंचों को
भर देती वह दानों से
जो लाई दूर से
अपने नन्हों के लिए
दिन पर दिन गुजरते गए
घोंसला छोटा हुआ
और बच्चे बढ़ते गए
देखा इक दिन नीड़
बैठी चुपचाप वह
भर ली
उड़ान बच्चों ने
उड़ान बच्चों ने
रह गई अकेली
सार यही जीवन का
सार यही जीवन का
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