Sunday, 5 April 2015
छलक आये नैनो से फिर स्मृति के साये
अतीत के झरोखों से दीये जगमगायें
मुस्कुरायें लब कभी बहुत हमें तड़पाये
प्रज्ज्वलित हो उठती लौ रह रह कर जब भी
छलक आये नैनों से फिर स्मृति के साये
रेखा जोशी
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