क्षितिज के उस पार
आस लिए सूरज की
देख रहे वो बच्चे
कुछ अर्द्धनग्न
कुछ मैले कुचैले कपड़ों में
लिपटे हुए
टकटकी बांधे
निहार रहे शून्य में
एक आस लिए
कभी तो मुस्कुराये गी
धूप वहाँ पर
कभी तो आयेगी
रोशनी वहाँ पर
कभी तो जगमगाएँ गी
वह काली दीवारें
कभी तो खिलें गे
उम्मीदों के कमल
चहकेगें वहाँ पर
सुन्दर रंग बिरंगे
पँछी
हसें गे तब वह भी
सुन कर लोरियाँ
ख्वाबो के महल में
माँ की
ढेर सारी ख्वाहिशें लिये
मन में
सो गये वह मन में
उम्मीद की इक
आस लिए
रेखा जोशी
आस लिए सूरज की
देख रहे वो बच्चे
कुछ अर्द्धनग्न
कुछ मैले कुचैले कपड़ों में
लिपटे हुए
टकटकी बांधे
निहार रहे शून्य में
एक आस लिए
कभी तो मुस्कुराये गी
धूप वहाँ पर
कभी तो आयेगी
रोशनी वहाँ पर
कभी तो जगमगाएँ गी
वह काली दीवारें
कभी तो खिलें गे
उम्मीदों के कमल
चहकेगें वहाँ पर
सुन्दर रंग बिरंगे
पँछी
हसें गे तब वह भी
सुन कर लोरियाँ
ख्वाबो के महल में
माँ की
ढेर सारी ख्वाहिशें लिये
मन में
सो गये वह मन में
उम्मीद की इक
आस लिए
रेखा जोशी
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