ढलती साँझ
उदास सी चुपचाप
सुनती रही
सागर की लहरों का शोर
तोड़ती रही वह मौन
सागर तट का
सुरमई शाम सिहर उठी
लहरों की गर्जना से
और सूरज धीरे धीरे
छूने लगा
आँचल सुनहरी लहरों का
नाचती थिरकती झूम उठी
लहरें पाकर
लालिमा सूरज की
खामोश शाम भी
चहक उठी देख
सतरंगी आसमाँ
रेखा जोशी
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