Friday, 10 April 2015

प्रधानाचार्य  [कोई नृप होय हमें क्या हानि]

 एक महाविधालय के प्रधानाचार्य के पद के लिए दो उम्मीदवारों ने इंटरव्यू दिया और दोनों ही सशक्त ,एक गोल्ड मेडिलिस्ट और दूसरे  की अंतराष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियाँ ,एक को चुना गया तो दूसरे ने अदालत में केस डाल  दिया । केस अदालत में होने के कारण लम्बा खिंच गया ,बेचारे अध्यापक और विधार्थी दोनों परेशान ,महाविधालय में दबे पाँव राजनीति डेरा डालने लगी महाविधालय दो गुटों में बंटने लगा ,आखिरकार विद्यार्थियों  के लीडर ने उन्हें  समझाया कि अपने को इस राजनीति  से अलग रखो ,''कोई नृप होय हमें क्या हानि'' चाहे कोई भी प्रधानाचार्य बने उन्हें तो अपनी पढ़ाई से मतलब है

रेखा जोशी 

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