कुपित हुई धरा
मच गया हाहाकार
कांपे पर्वत टूटे पहाड़
धराशाही हुये ऊँचे भवन मीनार
अधर में फंसे सबके प्राण
मचा शोर चहुँ ओर
त्रासदी त्रासदी
आपदा आई सब पर भारी
संकट में सबकी जान
चले न कोई जोर किसी का
पल भर में धरती पर
बिछ गये लाशों के ढेर
सो गये सदा के लिये
रत्न कई अनमोल
दया करो हे प्रभु
न खोलो तीसरी आँख
पापियों से भरी धरा को
दो सहनशीलता का
वरदान
रेखा जोशी
मच गया हाहाकार
कांपे पर्वत टूटे पहाड़
धराशाही हुये ऊँचे भवन मीनार
अधर में फंसे सबके प्राण
मचा शोर चहुँ ओर
त्रासदी त्रासदी
आपदा आई सब पर भारी
संकट में सबकी जान
चले न कोई जोर किसी का
पल भर में धरती पर
बिछ गये लाशों के ढेर
सो गये सदा के लिये
रत्न कई अनमोल
दया करो हे प्रभु
न खोलो तीसरी आँख
पापियों से भरी धरा को
दो सहनशीलता का
वरदान
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment