Thursday, 30 April 2015

त्रासदी त्रासदी

कुपित हुई धरा
मच गया हाहाकार
कांपे पर्वत टूटे पहाड़
धराशाही हुये ऊँचे भवन मीनार
अधर में फंसे सबके प्राण
मचा शोर चहुँ ओर
त्रासदी त्रासदी
आपदा आई  सब पर भारी
संकट में  सबकी जान
चले न कोई जोर किसी का
पल भर में धरती पर
बिछ गये लाशों के ढेर
सो गये  सदा के लिये
रत्न कई अनमोल
दया करो हे प्रभु
न खोलो तीसरी आँख
पापियों से भरी धरा को
दो सहनशीलता का
वरदान

रेखा जोशी

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