Thursday, 9 April 2015
हुये झंकृत यहाँ अंतर्मन के तार
सुन्दर फिजाये खूबसूरत नज़ारे
गुनगुना रही यहाँ उन्मुक्त हवायें
हुये झंकृत यहाँ अंतर्मन के तार
गीत गा रही यहाँ मदमस्त बहारें
रेखा जोशी
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