झील के उस पार
दूर गगन को
चूम रही अरुण की
सुनहरी रश्मियाँ
दूर गगन को
चूम रही अरुण की
सुनहरी रश्मियाँ
आँचल उसका
रंग सिंदूरी चमक रहा
आसमां भरा गुलाल
अनुपम सौंदर्य
बिखरा धरा पर
हो कर सवार कश्ती पर
आओ सजन निहारें
रंग बिरंगा पुष्पित संसार
तृप्त हो मन
देख अलौकिक छटा
जो समाई कण कण में
उसकी सृष्टि में
रेखा जोशी
अनुपम सौंदर्य
बिखरा धरा पर
हो कर सवार कश्ती पर
आओ सजन निहारें
रंग बिरंगा पुष्पित संसार
तृप्त हो मन
देख अलौकिक छटा
जो समाई कण कण में
उसकी सृष्टि में
रेखा जोशी
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