Friday, 14 November 2014

 "महिला अपराध: घर-बाहर की चुनोतियाँ-समस्या और समाधान" 


हमारे धर्म में नारी का स्थान सर्वोतम रखा गया है ,नवरात्रे हो या दुर्गा पूजा ,नारी सशक्तिकरण तो हमारे धर्म का आधार है | अर्द्धनारीश्वर की पूजा का अर्थ यही दर्शाता है कि ईश्वर भी नारी के बिना आधा है ,अधूरा है | वेदों के अनुसार भी ‘जहाँ नारी की पूजा होती है ‘ वहाँ देवता वास करते है परन्तु इसी धरती पर नारी के सम्मान को ताक पर रख उसे हर पल अपमानित किया जाता है | इस पुरुष प्रधान समाज में भी आज की नारी अपनी एक अलग पहचान बनाने में संघर्षरत है | जहाँ बेबस ,बेचारी अबला नारी आज सबला बन हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है वहीं अपने ही परिवार में उसे आज भी यथा योग्य स्थान नहीं मिल पाया ,कभी माँ बन कभी बेटी तो कभी पत्नी या बहन हर रिश्ते को बखूबी निभाते हुए भी वह आज भी वही बेबस बेचारी अबला नारी ही है | शिव और शक्ति के स्वरूप पति पत्नी सृष्टि का सृजन करते है फिर नारी क्यों मजबूर और असहाय हो जाती है और आखों में आंसू लिए निकल पड़ती है अपनी ही कोख में पल रही नन्ही सी जान को मौत देने | क्यों नहीं हमारा सिर शर्म से झुक जाता ,कौन दोषी है ?,
सही मायने में नारी अबला से सबला तभी बन पाए गी जब वह अपनी जिंदगी के निर्णय स्वयम कर पाये गी | इसमें कोई दो राय नही है कि आज की नारी घर की दहलीज से बाहर निकल कर शिक्षित हो रही है ,उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर सफलता की सीढियां चढ़ती जा रही है l आर्थिक रूप से अब वह पुरुष पर निर्भर नही है बल्कि उसकी सहयोगी बन अपनी गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चला रही है l बेटा और बेटी में भेद न करते हुए अपने परिवार को न्योजित करना सीख रही है ,लेकिन अभी भी वह समाज में अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्षरत है ,कई बार न चाहते हुए भी उसे जिंदगी के साथ समझौता करना पड़ता है ,वह इसलिए कि हमारे समाज में अभी भी पुत्र और पुत्री में भेदभाव किया जाता है ,पुत्र के पैदा होने पर घर में हर्षौल्लास का वातावरण पैदा हो जाता है और बेटी के आगमन पर घरवालों के मुहं लटक जाते है ,”चलो कोई बात नही लक्ष्मी आ गई है ”ऐसी बात बोल कर संतोष कर लिया जाता है 
शादी के समय'' दहेज ''रूपी दानव न जाने कितनी लड़कियों को खा जाता है ,आये दिन अखबारों  में बहुओं को ज़िंदा जलाने की खबरें हम पढ़ते है ,घरेलू हिंसा आज हर घर की कहानी है ,कुछ कहानियाँ अखबारों की सुखियों में आ जाती है और अधिकतर ''घरेलू मामला है ''यह कह कर घर में ही ऐसी बातों को दबा दिया जाता है ।सबसे मुख्य बात यह है कि चाहे घर हो याँ बाहर ,हमारे समाज में औरत को सदा दूसरा दर्जा ही नसीब हुआ है । यह लिखते हुए मुझे बहुत कष्ट हो रहा है कि हमारे समाज में बच्चियाँ  लडकियाँ औरते जब खुले घूमते हुए विक्षिप्त मानसिकता वाले दरिंदों  का  शिकार हो जाती है ।
भले ही समाज में खुले घूम रहे मनुष्य के रूप में जानवर उसकी प्रगति में रोड़े अटका रहे है ,लेकिन उसके अडिग आत्मविश्वास को कमजोर नही कर पाए l हमारे देश को श्रीमती इंदिरा गांधी ,प्रतिभा पाटिल जी ,कल्पना चावला जैसी भारत की बेटियों पर गर्व है ,ऐसा कौन सा क्षेत्र है जिस में आज की नारी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन न कर पा रही हो | आज नारी बदल रही है और साथ ही समाज का स्वरूप भी बदल रहा है ,वह माँ बेटी ,बहन पत्नी बन कर हर रूप में अपना कर्तव्य बखूबी निभा रही है | मेरा निवेदन है भारतीय नारी से की वह देश की भावी पीढ़ी में अच्छे संस्कारों को प्रज्ज्वलित करें ,उन्हें सही और गलत का अंतर बताये ,अपने बच्चो में देश भक्ति की भावना को प्रबल करते हुए एक सशक्त समाज का निर्माण करने की ओर एक छोटा सा कदम उठाये ,मुझे विशवास है नारी शक्ति ऐसा कर सकती है और निश्चित ही एक दिन ऐसा आयेगा जब भारतीय नारी द्वारा आज का उठाया यह छोटा सा कदम हमारे देश को एक दिन बुलंदियों तक ले जाए गा | |
विश्व से पर्वत सी टकरा सकती है महिला
विश्व को फूल सा महका सकती है महिला
विश्व के प्रांगण में वीरांगना लक्ष्मी है महिला
विश्व फिर भी कहता है अबला है महिला

रेखा जोशी 


No comments:

Post a Comment