उठने लगी आज
फिर
इक हलचल सी
सीने में मेरे
कसमसाने लगी
उफनती भावनाएँ
था बाँध रखा
अब तक जिन्हे
नही रोक पाई मै
जज़्बातों की
उमड़ती बाढ़ को
डूब गया मेरा मन
आज
तोड़ सब बंधन
उमड़ पड़ी
फिर
नैनो से मेरे
वही पगली बाँवरी
वही पगली बाँवरी
अविरल अश्रुधारा
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment