मेरी एक पुरानी रचना [साहस ]
नील नभ पर
उड़ चले
पंछी ,इक लम्बी उड़ान
संग साथी लिए
निकल पड़े सब
तलाशने
अपनी मंजिल अनजान
अनदेखी राहों में हुआ
सामना
आगे था भयंकर तूफ़ान
घिर गए चहुँ ओर से
फंस गए वो सब ,
इक चक्रव्यूह में
अभिमन्यु की तरह
था निकलना
मुश्किल
पर बुलंद हौंसलों ने
कर दिया नवसंचार
थके हारे पंखो में
भर दी जान
इक नया जोश लिए
उस
कठिन घड़ी में
मिलकर उन सब ने
अपने
पंखों के दम पे
टकराने का तूफान से
था साहस दिखलाया
अपने
फडफडाते परों से
था तूफ़ान को हराया
हिम्मत और जोश लिए
बढ़ चले वह
फिर से इक
अनजान डगर पे |
रेखा जोशी
नील नभ पर
उड़ चले
पंछी ,इक लम्बी उड़ान
संग साथी लिए
निकल पड़े सब
तलाशने
अपनी मंजिल अनजान
अनदेखी राहों में हुआ
सामना
आगे था भयंकर तूफ़ान
घिर गए चहुँ ओर से
फंस गए वो सब ,
इक चक्रव्यूह में
अभिमन्यु की तरह
था निकलना
मुश्किल
पर बुलंद हौंसलों ने
कर दिया नवसंचार
थके हारे पंखो में
भर दी जान
इक नया जोश लिए
उस
कठिन घड़ी में
मिलकर उन सब ने
अपने
पंखों के दम पे
टकराने का तूफान से
था साहस दिखलाया
अपने
फडफडाते परों से
था तूफ़ान को हराया
हिम्मत और जोश लिए
बढ़ चले वह
फिर से इक
अनजान डगर पे |
रेखा जोशी
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