आँखों में भर कर
अश्क
जी रहे है यह
अभिशप्त ज़िंदगी
न जाने कब से
सौंप दिया जिसे
अपना सब कुछ
चाहा था जिसे
दिल ओ जान से
लेकिन
निकला वह बैरी
जन्म जन्म का
किया ज़ख्मी दिल
हमारा
कदम कदम पर
टूट चुके अब
तार दिल के
रूठ चुका अब
संगीत
ज़िंदगी का
जिये जा रहे
फिर भी
न जाने क्यों
रेखा जोशी
अश्क
जी रहे है यह
अभिशप्त ज़िंदगी
न जाने कब से
सौंप दिया जिसे
अपना सब कुछ
चाहा था जिसे
दिल ओ जान से
लेकिन
निकला वह बैरी
जन्म जन्म का
किया ज़ख्मी दिल
हमारा
कदम कदम पर
टूट चुके अब
तार दिल के
रूठ चुका अब
संगीत
ज़िंदगी का
जिये जा रहे
फिर भी
न जाने क्यों
रेखा जोशी
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