हूँ चाहती
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे
खड़ी किनारे पर
सागर के
चुन रही कुछ सीपियाँ
टूटी फूटी
कैसे करूँ मंथन
कल्पना के सागर का
कैसे ढूँढू
अमूल्य निधि
हो सके
फिर
स्वप्न मेरे परिष्कृत
कर रही प्रयास
निरंतर
हूँ चाहती
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे
रेखा जोशी
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे
खड़ी किनारे पर
सागर के
चुन रही कुछ सीपियाँ
टूटी फूटी
कैसे करूँ मंथन
कल्पना के सागर का
कैसे ढूँढू
अमूल्य निधि
हो सके
फिर
स्वप्न मेरे परिष्कृत
कर रही प्रयास
निरंतर
हूँ चाहती
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment