पतंग सी
उड़ती आकाश में
पल में कटी
धरा पे आन गिरी
बंद कमरों में
दीवारों से टकराती
सिसकियाँ सुलग रही
अंगना में
बरस रही बदरी
भीतर
उठती ज्वाला सी
भीग रहे नयन
सीने में बुझाती रही
अश्रुधारा से चिंगारी
बाहर
फूल खिले गुलशन में
मुस्कान ओढे
लब पे
हँसती गुनगुनाती रही
पतंग सी
उड़ती आकाश में
पल में कटी
धरा पे आन गिरी
रेखा जोशी
उड़ती आकाश में
पल में कटी
धरा पे आन गिरी
बंद कमरों में
दीवारों से टकराती
सिसकियाँ सुलग रही
अंगना में
बरस रही बदरी
भीतर
उठती ज्वाला सी
भीग रहे नयन
सीने में बुझाती रही
अश्रुधारा से चिंगारी
बाहर
फूल खिले गुलशन में
मुस्कान ओढे
लब पे
हँसती गुनगुनाती रही
पतंग सी
उड़ती आकाश में
पल में कटी
धरा पे आन गिरी
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment