सुलग रहे
सीने में
मेरे
उमड़ते जज़्बात
धुआँ धुआँ
बढ़ रहा
भीतर ही भीतर
भीग गई अखियाँ
और
टूट गई आस
क्षण भर में
बदल जाती ज़िंदगी
और
रह जाती है बस
घुटन
रेखा जोशी
सीने में
मेरे
उमड़ते जज़्बात
धुआँ धुआँ
बढ़ रहा
भीतर ही भीतर
भीग गई अखियाँ
और
टूट गई आस
क्षण भर में
बदल जाती ज़िंदगी
और
रह जाती है बस
घुटन
रेखा जोशी
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