आरक्षण
”तुम अछूत हो इसलिए तुम मंदिर के अंदर कदम तक नही रख सकते ,तुम अछूत हो तुम हम लोगों के साथ उठ बैठ नही सकते,तुम अछूत हो इसलिए दूर रहो हमसे , ”एक समय था जब समाज में ऐसे बोल बहुत बोले जाते थे | बहुत सहा था इस समाज में रहने वाले कुछ लोगों ने ,समाज में शून्य था उनका अस्तित्व ,पानी तक नही पी सकते थे उच्चवर्ग के कूओं से | सदियों पहले हिन्दू धर्म में जो वर्ण व्यवस्था बनाई गई थी, वह उस समय की आवश्यकता थी ,वह ऐसा समय था जब चार वर्णो में विभाजित समाज के विभिन्न व्यक्ति निष्ठा से अपना अपना कार्य किया करते थे , लेकिन कालांतर उच्चवर्ग द्वारा निम्नवर्ग का शोषण होने के कारण उसका स्वरूप बहुत बदलने लगा और सदियों से चली आ रही परम्पराएँ अभी तक कुछ लोगों की मानसिकता को आहत किये हुए है | महात्मा गांधी जी भी जाति प्रथा के विरुद्ध थे उनके अनुसार हम सब एक ईश्वर की संतान है इसलिए वह ऐसे लोगों को हरी के जन कह कर सम्बोधित करने लगे और अनुसूचित जाति के लोग हरिजन कहलाने लगे|
स्वतन्त्र भारत के संविधान को ध्यान में रखते हुए डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने आज़ादी से पूर्व अंग्रेज़ सरकार को ज्ञापन दे कर अनुसूचित जाति के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए 1943 एक ज्ञापन दिया ,जिसके अनुसार अनुसूचित जाति के लोगों को पढ़ने के लिए उन्हें छात्रवृतियाँ और अन्य वितीय सहायता प्रदान करनी चाहिए एवं आगे नौकरी आदि में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए ,जिसे अंग्रेज़ सरकार ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था | आज़ादी से लेकर अब तक ”आरक्षण ”भारत में एक ऐसे तूफ़ान की तरह मंडराता और फैलता जा रहा है जो अपने में अनेक अनुसूचित जनजातियाँ ,कई समुदायों को भी लपेटता जा रहा है ,जिसका सीधा सीधा फायदा देश के चुनाव में वोटों की राजनीति में उठाया जाता है |
कहने को तो लोकतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता हमारे देश से संविधान की नीव है लेकिन धर्म की आड़ में अल्पसंख्यक समुदायों को आरक्षण प्रदान कर राजनीतिक पार्टियाँ अपना उल्लू सीधा कर रही है ,लेकिन कब तक आरक्षण के मुद्दे पर रोटियाँ सिकती रहें गी,जनता में आक्रोश बढ़ता जा रहा है ,जब एक होनहार विद्यार्थी पिछड़ जाता है और आरक्षण के नाम पर किसी और को वह स्थान मिल जाता है याँ कोई अधिकारी आरक्षण के नाम पर तरक्की पा जाता है और योग्य इंसान पीछे रह जाता है | गरीबी रेखा से नीचे हर व्यक्ति को आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन सदा किसी भी वर्ग की पीढ़ी दर पीढ़ी इसका लाभ उठाती जाये यह सरासर अन्याय है इससे आम व्यक्ति के मन में विद्रोह उठना सम्भाविक है लेकिन यह बहुत अफ़सोस की बात है कि हमारे देश की राजनैतिक पार्टियाँ सब कुछ जानते समझते हुए अनजान बनी हुई है |
रेखा जोशी
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